कौन हूं मै....?
अपनी सच्चाई से अनजान हूं मैं....?
दिल से कुछ बाहर से कुछ और हूं मै.....
जैसा मैं सोचता हूं, क्या सचमुच ऐसा ही हूं मै....?
हमेशा इसी उलझन में रहता हूं मैं......
क्या अपने सच को झुठला देता हूं मैं...?
जानकर भी कहीं अनजान तो नहीं बन जाता हूं मैं...? रखता तो अपने आप को मजबूत हूं मै, पर फिर भी डर लगता है,
कहीं ऐसा ही तो नहीं हूं मै.......?
किससे साझा करूं अपनी इस उलझन को, क्या कोई समझेगा कैसा हूं मैं....? या कोई समझाएगा की ऐसा हूं मैं......
कौन हूं मैं...
क्या अपनी सच्चाई से अनजान हूं मै....?
©Goldmine
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