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"फर्क पड़ रहा है .....
कुछ तो असामान्य गति से बदल रहा है
पर तुम हकीकत हो कोई ख्वाब नहीं
जाते हैं जिधर सब मैं उधर आखिर क्यों नहीं ?
हर बार तेरी महफिल मैं कुछ सुकून तो मिलता
फिर भी मैं अपने ही उलझी हुई राहों का तमाशा
बस तुझे गुनगुनाना चाहती हूं
एक पसंदीदा संगीत बनाना चाहती हूं
छा रहा है सारी बस्ती में घनघोर अंधेरा
रोशनी हो भी तो मगर कैसे ?
घर जलाना नहीं मैं तो बस बुझाना चाहती हूं......"