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"तुम मेरे नशे को तोड़ सकते हो, उस नशे के सुरूर को नही।
तुम गौतम को तोड़ सकते हो, पर गौतम के गुरूर को नही।।
मुझे मौकों की तलाश नही, मै खुद ही मौकों का आदि हूँ।
मुझे बगावत सीखाते हो सनम, मैं तो अपनी फितरत से ही बागी हूँ।।
वक्क्त की तरह बह जाऊँ , तेरी जिंदगी कहाँ मेरा ठिकाना है।
तपती रेत से गर्म या फिर बहते लावे से, जिस्म में लहु राजपूताना है।।
Gautam singh gosai."