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शीर्षक-- नेता जी फिर आया मौसम चुनावों का। नेता क

शीर्षक-- नेता जी


फिर आया मौसम चुनावों का।
नेता करेंगे अब दौरा गांवों का।

कैसे हाथ जोड़कर ढोंक लगाते, 
प्यारे नेता शहर गली चौबारे का।

कभी पांच साल में हाल ना पूछें,
यूं कहते जन सेवक जनता का।

सदा चमचमाती लाल मर्सिडीज,
धूल उड़ाता काफिला कारों का।

भोले बगुले सी पोशाक पहनकर, 
गले महके हार सजीले फूलों का।

कितने जय जयकारे जोर लगाते, 
 संग झुंड  छुठ भैया नेताओं का।

कभी वादे इनको याद नहीं रहते,
रहे यह चश्मा लगाकर लोभ का।

चुनाव में पैर पकड़ते अम्माजी के,
यूं साष्टांग दंडवत करते ताऊ का।

कितने भोले - भाले देश के  नेता, 
पल-पल रंग बदलते गिरगिट का।

यह लोकतंत्र के रोबीले राजा,
क्यों सगे कहां कब जनता का।

सरोकार नहीं विकास से इन्हें,
नेता बस ध्यान रखेंगे जेबों का।

जीत चुनाव पाते जादूई छड़ी,
माल दोनों हाथ बटोरें देश का।

है अगर ईमानदार तो जरा बता दें,
बने धनिक राज क्या है वैभव का।

बनते पीढ़ी दर पीढ़ी राजा शाही, 
चुनाव खर्च करें कैसे करोड़ों का।

फिर आया मौसम चुनावों का।
नेता करेंगे अब दौरा गांवों का।


डॉ. भगवान सहाय मीना 'अमिष'
बाड़ा पदमपुरा, जयपुर, राजस्थान।

©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani
  Neta ji

Neta ji #कविता

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