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Sunil Kumar Maurya Bekhud
बंजर का इक बबूल हूं, करता न कोई प्यार पहना दिया है रब ने क्यों कांटों का मुझको हार कहते हैं लोग मुझको मैं किसी काम का नहीं जड़ से ही काट देते हैं ,देते हैं मुझको मार पत्थर पर भी उग जाता हूं ,पानी नहीं जहां मेरे गुलों से जाने क्यों आती नहीं बहार कोई पथिक ना बैठता डरता है छांव से सुनता नहीं है कोई भी दिल की मेरे पुकार हर कोई मेरी और है नफरत से देखता बेखुद ये देख दिल मेरा दुखता है बार-बार ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #बबूल #गज़ल #हिंदी #सुनील कुमार मौर्य बेखुद
Sunil Gupta
दिनांक 26/8/ 18 दिन. रविवार नेह परस्पर नहीं अगर तो ,राखी केवल डोर। होता वहीं अटूट नेह से ,वही सूत कमजोर। नेह बिना राखी ले महँगी ,बाँधो जैसी चाह। मन- मंजिल में मिलन कहाँ है , कंटक सारी राह। पहले कंटक दूर करें फिर, बिछा नेह के फूल। रिश्तों पर जो पड़ी हुई है, पोछें सारी धूल। बिना प्यार रिश्तों की कीमत ,होती कितनी सोच। बिन प्यार चिड़ियाँ भी परस्पर,नहीं मिलाती चोंच। रिश्तों की कीमत तो तब है, सुख दुख में हो साथ। नेह ,प्यार , श्रद्धा ,तो राखी, इन बिन बंधन हाथ। #सुनील_गुप्ता केसला रोड सीतापुर सरगुजा ©Sunil Gupta #Yaari #राखी #सुनील
Sunil Kumar Sharma
याद है ना। पूरा पढे नीचे कैप्शन में :- 👇 ©Sunil Kumar Sharma याद है तुम्हें वो पहला दिन, जब मैं सड़कों पर भटका करता था। तुम्हारे बारे में सोचकर, मैं मन ही मन हंसता रहता था। तुम खूबसूरत लगती थी। जैसे कही की राजकुमारी, इसलिए मेरा अपना मन, दिन रात सुबह शाम, चौबीसों घंटे तुम्हारे आसपास ही भटका करता था।
याद है तुम्हें वो पहला दिन, जब मैं सड़कों पर भटका करता था। तुम्हारे बारे में सोचकर, मैं मन ही मन हंसता रहता था। तुम खूबसूरत लगती थी। जैसे कही की राजकुमारी, इसलिए मेरा अपना मन, दिन रात सुबह शाम, चौबीसों घंटे तुम्हारे आसपास ही भटका करता था।
read moreSunil Kumar Verma
मासूम सी नाजुक बच्ची, एक आँगन की कली थी वो। माँ बाप की आँख का तारा थी, अरमानो से पली थी वो।। जिसकी मासूम अदाओ से, माँ बाप का दिन बन जाता था। जिसकी एक मुस्कान के आगे, पत्थर भी मोम बन जाता था।। वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।। जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देख़े थे। उसपे ये अन्याय हुआ, ये कैसे विधि के लिखे थे।। एक पांच सालकी बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ। एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ।। उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी। मेरा कलेजा फट जाता है,तो माँ कैसे सोयी होगी।। जिस मासूम को देखके मन में, प्यार उमड़ के आता है। देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है।। कपड़ो के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मै। आखिर पांच साल की बच्ची कोा, साड़ी कैसे पहनाऊँ मै।। गर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा। इस देश को बेटी देने मे, भगवान भी जब घबराएगा।। सुनील कुमार 8502966427,9079391607 मासूम सी नाजुक बच्ची, एक आँगन की कली थी वो। माँ बाप की आँख का तारा थी, अरमानो से पली थी वो।। जिसकी मासूम अदाओ से, माँ बाप का दिन बन जाता था। जिसकी एक मुस्कान के आगे, पत्थर भी मोम बन जाता था।। वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।।
मासूम सी नाजुक बच्ची, एक आँगन की कली थी वो। माँ बाप की आँख का तारा थी, अरमानो से पली थी वो।। जिसकी मासूम अदाओ से, माँ बाप का दिन बन जाता था। जिसकी एक मुस्कान के आगे, पत्थर भी मोम बन जाता था।। वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।।
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