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हो कौन तुम..... मौन मुखर होकर देखता,


हो कौन तुम..... 
मौन मुखर होकर देखता, 
                     खुद  को  ही  निशब्द  सा।
हो कौन  तुम,  हो  कौन तुम, 
                 क्यों सवाल पूछता निष्ठुर सा।।
पहचान की मोहताज कौन, 
                       किसी  की  पहचान  सा।
कब तेरा  स्वाभिमान था, 
                 कैसा  अब  है अपमान  सा।।
चक्रव्यूह कौन  रच  रहा है, 
                   रोज़  ही  एक  अंजान  सा।
खेल तो कोई है खेल रहा, 
               रोज़ाना एक नया विधान सा।।
दुआ सलाम की कुशल क्षेम, 
             है कहाँ एक दूंजे का सम्मान सा।
हर परिस्थितियों में जिनके रहा, 
             वो शख़्स मिलता है अंजान सा।।
हो कौन  तुम,  हो  कौन तुम, 
                 क्यों सवाल पूछता निष्ठुर सा।।

यशवंत राय श्रेष्ठ (दुबौली गोरखपुर)

©यशवंत राय 'श्रेष्ठ'
  Life is none