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कभी खुद से मिल लेता हूं कभी खुद को खो देता हूं। य

कभी खुद से मिल लेता हूं
कभी खुद को खो देता हूं।

यादों के ख़जाने में दुंद लेता हुँ खुद को,
कभी खुद को तलाशने में खुद को ही खो देता हूं।

अनजान गाँवों की गलियों में,चौपाल पर कभी नदियों की पाल पर
कभी अतीत की गलियों में।

ढूंढता हुँ बचपन को मिट्टी में,कभी मिट्टी के घर मे,
वो गाँव के खेतों में,कभी धुलण्डी पे यारों की टोली में।

देखा मैंने खुद को यही इसी मिट्टी में,कभी मिट्टी खाते
कभी मिट्टी के कच्चे घर बनाते यारों की टोली में।

देखा मैंने तालाब में नहाते बचपन को,बरसात में बिघते बचपन को खेतों में,
बहनों के साथ लुकाछुपी में,भाईयो के साथ चोर पुलिस में।

कभी खुद को खो देता हूं,कभी खुद को तलाशने में
गाँव की मिट्टी में,कभी मिट्टी के घर में। good evening
कभी खुद से मिल लेता हूं
कभी खुद को खो देता हूं।

यादों के ख़जाने में दुंद लेता हुँ खुद को,
कभी खुद को तलाशने में खुद को ही खो देता हूं।

अनजान गाँवों की गलियों में,चौपाल पर कभी नदियों की पाल पर
कभी अतीत की गलियों में।

ढूंढता हुँ बचपन को मिट्टी में,कभी मिट्टी के घर मे,
वो गाँव के खेतों में,कभी धुलण्डी पे यारों की टोली में।

देखा मैंने खुद को यही इसी मिट्टी में,कभी मिट्टी खाते
कभी मिट्टी के कच्चे घर बनाते यारों की टोली में।

देखा मैंने तालाब में नहाते बचपन को,बरसात में बिघते बचपन को खेतों में,
बहनों के साथ लुकाछुपी में,भाईयो के साथ चोर पुलिस में।

कभी खुद को खो देता हूं,कभी खुद को तलाशने में
गाँव की मिट्टी में,कभी मिट्टी के घर में। good evening