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तुम्हारे इश्क में ज़ख्मी मैं ही काफी ज़माने को, क

तुम्हारे इश्क में ज़ख्मी
मैं ही काफी ज़माने को,
   कि मुझपर ही सितम अब हो  
यूँ कत्ले-आम मत करना ।
   कि आना मुझसे मिलने तुम
मगर फिर शाम मत करना ।।
सुमित उपाध्याय
तुम्हारे इश्क में ज़ख्मी
मैं ही काफी ज़माने को,
   कि मुझपर ही सितम अब हो  
यूँ कत्ले-आम मत करना ।
   कि आना मुझसे मिलने तुम
मगर फिर शाम मत करना ।।
सुमित उपाध्याय