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Story of Sanjay Sinha जब दीदी की शादी हो रही थी

Story of Sanjay Sinha 
 जब दीदी की शादी हो रही थी तब मां उसे समझा रही थी। मैं वहीं पलंग पर बैठा था। मां दीदी को शादी का मतलब समझा रही थी। मां कह रही थी कि शादी एक ऐसी रस्म है, जिससे गुज़र कर दो लोग एक हो जाते हैं। मैं बहुत हैरान हो कर मां की बातें सुन रहा था। ऐसा कैसे होगा कि दो लोग एक हो जाएंगे।आपको पता ही है कि संजय सिन्हा के मन में छोटी-छोटी बातें सवाल में तब्दील हो जाती हैं। दीदी मां की पूरी बातें ध्यान से सुन रही थी, और संजय सिन्हा का मन अगले दिन दो के एक हो जाने के जादू को देखने के लिए मचल रहा था। मां दीदी को समझा रही थी कि विवाह जन्म जन्मांतर का संबंध होता है। तुम इसे चाह कर भी नहीं तोड़ पाओगी। विवाह एक संकल्प है, साथ हो जाने का।दीदी नज़रें झुका कर मां की बातें सुन रही थी। तुम्हारी शादी का मुहुर्त निकला है सुबह सवा तीन बजे का। पंडित जी कई मंत्र पढ़ेंगे, अग्नि के फेरे लगेंगे और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर तुम दो से एक हो जाओगे। मैं हैरान था। मैं बीच में कुछ बोलना नहीं चाह रहा था इसलिए चुप रहा। पर दीदी ने भी मां से नहीं पूछा कि दो कौन? शायद दीदी समझ रही थी कि दूसरा कौन होगा। मैं बहुत छोटा था और तब ये अंदाज़ा नहीं लगा सका था कि मां दीदी और जीजाजी के एक होने की बात कर ही है। मां दीदी को बता रही थी कि विवाह में वर-वधु सात फेरों के साथ सात वचन देते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है। यह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतर का रिश्ता होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता। पंडित की उपस्थिति में मंत्रों के उच्चारण के साथ अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो व्यक्ति तन, मन और आत्मा से एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं।  दीदी अपना उत्साह छुपाए बैठी थी पर मेरे लिए दीदी की शादी की रात जादू होने वाला था। सात फेरों और सात वचनों के बूते दो लोग एक हो जाएंगे। अहा! मैं भी देखूंगा दो का एक होना। ये अलग बात है कि ऐन वक्त पर मैं सो गया था। मैंने दो को एक होते तो नहीं देखा, पर जब मेरी नींद खुली, तब मैंने देखा था कि जो दीदी कल तक अपने छोटे भाई को बात-बात पर सीने से लगा लिया करती थी, वो एक गाड़ी में बैठ कर उस व्यक्ति के साथ चली जा रही थी जिसके साथ उसका विवाह हुआ था। मैं बहुत देर तक अपनी नींद को कोसता रहा। सोचता रहा कि दो लोग एक कैसे हुए होंगे। फिर मैंने उसी दिन तय किया कि मैं भी मां से कह कर जल्दी शादी कर लूंगा और देखूंगा कि दो एक कैसे हो जाते हैं। दीदी की शादी के बाद मैंने मां से अपनी शादी की बात कई बार की, पर मां हंस देती थी। मुझे अपनी शादी की बड़ी चिंता थी। फिर मां बिना मेरी शादी किए ही संसार से चली गई। पर मेरे मन में दो से एक होने का संकल्प छोड़ गई थी। समय बीतता गया, मैं बड़ा हो गया। जैसे ही मैं बड़ा हुआ, मैंने शादी कर ली। मेरी शादी भी हिंदू धर्म के अनुसार मंदिर में भगवान जी के आगे अग्नि के सात फेरे लेकर सात वचनों के साथ हुई। उस दिन हम दो से एक हो गए थे। सही मायनों में मैं उस दिन समझा था कि मां जब दीदी को दो से एक होने का ज्ञान दे रही थी तो उसका क्या मतलब था। कल मैंने आपको अपनी दोस्त निधि की कहानी सुनाई थी। निधि ने मुझे अपने घर बुलाया था और कह रही थी कि उसे नितिन से तलाक चाहिए। मैं पूरी बात समझ रहा था, पर मैंने ये कह कर उसे समझाने की कोशिश की थी कि हमारे धर्म में विवाह को तोड़ने के लिए तलाक जैसा कोई शब्द है ही नहीं। मैरिज टूट सकती है डिवोर्स से। निकाह टूट सकता है तलाक से। पर विवाह कैसे टूटेगा? हमारे यहां तलाक जैसा शब्द है क्या? कई लोगों ने मुझे तलाक का विकल्प संबंध विच्छेद और परित्याग समझाया है। पर विवाह में इस तरह का कोई विकल्प हमें नहीं दिया गया। जहां विकल्प नहीं होता, वहीं संकल्प होता है। जहां संकल्प होता है, वहीं रिश्ते होते हैं।

Sanjay Sinha
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Mukesh Poonia

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Super Creator
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Story of Sanjay Sinha जब दीदी की शादी हो रही थी तब मां उसे समझा रही थी। मैं वहीं पलंग पर बैठा था। मां दीदी को शादी का मतलब समझा रही थी। मां कह रही थी कि शादी एक ऐसी रस्म है, जिससे गुज़र कर दो लोग एक हो जाते हैं। मैं बहुत हैरान हो कर मां की बातें सुन रहा था। ऐसा कैसे होगा कि दो लोग एक हो जाएंगे।आपको पता ही है कि संजय सिन्हा के मन में छोटी-छोटी बातें सवाल में तब्दील हो जाती हैं। दीदी मां की पूरी बातें ध्यान से सुन रही थी, और संजय सिन्हा का मन अगले दिन दो के एक हो जाने के जादू को देखने के लिए मचल रहा था। मां दीदी को समझा रही थी कि विवाह जन्म जन्मांतर का संबंध होता है। तुम इसे चाह कर भी नहीं तोड़ पाओगी। विवाह एक संकल्प है, साथ हो जाने का।दीदी नज़रें झुका कर मां की बातें सुन रही थी। तुम्हारी शादी का मुहुर्त निकला है सुबह सवा तीन बजे का। पंडित जी कई मंत्र पढ़ेंगे, अग्नि के फेरे लगेंगे और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर तुम दो से एक हो जाओगे। मैं हैरान था। मैं बीच में कुछ बोलना नहीं चाह रहा था इसलिए चुप रहा। पर दीदी ने भी मां से नहीं पूछा कि दो कौन? शायद दीदी समझ रही थी कि दूसरा कौन होगा। मैं बहुत छोटा था और तब ये अंदाज़ा नहीं लगा सका था कि मां दीदी और जीजाजी के एक होने की बात कर ही है। मां दीदी को बता रही थी कि विवाह में वर-वधु सात फेरों के साथ सात वचन देते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है। यह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतर का रिश्ता होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में तोड़ा नहीं जा सकता। पंडित की उपस्थिति में मंत्रों के उच्चारण के साथ अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो व्यक्ति तन, मन और आत्मा से एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं।  दीदी अपना उत्साह छुपाए बैठी थी पर मेरे लिए दीदी की शादी की रात जादू होने वाला था। सात फेरों और सात वचनों के बूते दो लोग एक हो जाएंगे। अहा! मैं भी देखूंगा दो का एक होना। ये अलग बात है कि ऐन वक्त पर मैं सो गया था। मैंने दो को एक होते तो नहीं देखा, पर जब मेरी नींद खुली, तब मैंने देखा था कि जो दीदी कल तक अपने छोटे भाई को बात-बात पर सीने से लगा लिया करती थी, वो एक गाड़ी में बैठ कर उस व्यक्ति के साथ चली जा रही थी जिसके साथ उसका विवाह हुआ था। मैं बहुत देर तक अपनी नींद को कोसता रहा। सोचता रहा कि दो लोग एक कैसे हुए होंगे। फिर मैंने उसी दिन तय किया कि मैं भी मां से कह कर जल्दी शादी कर लूंगा और देखूंगा कि दो एक कैसे हो जाते हैं। दीदी की शादी के बाद मैंने मां से अपनी शादी की बात कई बार की, पर मां हंस देती थी। मुझे अपनी शादी की बड़ी चिंता थी। फिर मां बिना मेरी शादी किए ही संसार से चली गई। पर मेरे मन में दो से एक होने का संकल्प छोड़ गई थी। समय बीतता गया, मैं बड़ा हो गया। जैसे ही मैं बड़ा हुआ, मैंने शादी कर ली। मेरी शादी भी हिंदू धर्म के अनुसार मंदिर में भगवान जी के आगे अग्नि के सात फेरे लेकर सात वचनों के साथ हुई। उस दिन हम दो से एक हो गए थे। सही मायनों में मैं उस दिन समझा था कि मां जब दीदी को दो से एक होने का ज्ञान दे रही थी तो उसका क्या मतलब था। कल मैंने आपको अपनी दोस्त निधि की कहानी सुनाई थी। निधि ने मुझे अपने घर बुलाया था और कह रही थी कि उसे नितिन से तलाक चाहिए। मैं पूरी बात समझ रहा था, पर मैंने ये कह कर उसे समझाने की कोशिश की थी कि हमारे धर्म में विवाह को तोड़ने के लिए तलाक जैसा कोई शब्द है ही नहीं। मैरिज टूट सकती है डिवोर्स से। निकाह टूट सकता है तलाक से। पर विवाह कैसे टूटेगा? हमारे यहां तलाक जैसा शब्द है क्या? कई लोगों ने मुझे तलाक का विकल्प संबंध विच्छेद और परित्याग समझाया है। पर विवाह में इस तरह का कोई विकल्प हमें नहीं दिया गया। जहां विकल्प नहीं होता, वहीं संकल्प होता है। जहां संकल्प होता है, वहीं रिश्ते होते हैं। Sanjay Sinha #News

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