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Story of Sanjay Sinha कल दफ्तर से छुट्टी थी। पत्

Story of Sanjay Sinha 
 कल दफ्तर से छुट्टी थी। पत्नी ने सुबह ही पूछ लिया था कि संजय, तुम्हारा कोई प्रोग्राम तो नहीं है न? मैंने बिना कुछ सोचे समझे कह दिया था कि आज मैं एकदम फ्री हूं। कोई काम नहीं। मेरे मुंह से इतना निकलना था कि पत्नी खुश हो गई। कहने लगी कि आज तुम मेरा एक काम कर दो। तुम मेरे साथ शाम को मेरी सहेली अर्चना के घर चलना। “अर्चना के घर? मेरा क्या काम?”

“अर्चना की शादी की बात करने। अर्चना दुविधा में है कि शादी करे या न करे। तुम उसे समझा सकते हो। तुम उसे समझा सकते हो कि उसे अब शादी कर लेनी चाहिए। लड़का सिंगापुर में रहता करता है। लड़का भी उसी की उम्र का है और उसकी भी शादी नहीं हुई है। ऐसे में ये जोड़ी ठीक रहेगी।”मैं अर्चना को जानता हूं। वो मेरी पत्नी की सहेली है। हमारे घर भी आती रहती है। हिंदुस्तान में लड़कियों की शादी की जो सामान्य उम्र लोगों ने तय कर रखी है, उसे वो पार कर चुकी है और अब तक उसकी शादी नहीं हुई है। कई बार घरवालों की लेटलतीफी या फिर कोई उचित मैच का नहीं मिल पाने के कारण शादी में देर हो जाती है। और जितना मुझे पता है वो अब मानसिक रूप से बिना शादी के खुश रहने लगी है। वो अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने लगी है। वो अपना काम करती है, आर्थिक रूप से पूरी तरह आत्मनिर्भर है और खुद को पूरी तरह फिट रखती है। वो योगा करती है, जिम जाती है और अपने ढंग से अपना छोटा सा बिजनेस भी संभालती है। सच तो ये है कि अब वो अपने घरवालों को भी संभालती है। पर वो जहां कहीं भी जाती है, लोग उससे सीधे-सीधे पूछ लेते हैं कि शादी कब करोगी? वो मेरी पत्नी की पक्की सहेली है और मेरी पत्नी भी इधर-उधर नज़र रखती है कि कहीं कोई अच्छा लड़का मिल जाए तो वो उससे उसकी शादी की बात चलाए। मैं कहानियां सुना-सुना कर कई लड़कियों की शादी करा चुका हूं। मेरी पत्नी ने मुझे इतना महत्वपूर्ण काम दिया तो मैं आश्वस्त था कि मैं अर्चना से मिल कर उसे शादी के लिए समझा लूंगा। मैंने पत्नी से कहा कि जब इतना अच्छा लड़का मिल गया है तो फिर अर्चना को सोचना भी क्यों? उसे तो तुरंत हां कर देनी चाहिए। “मैंने कहा न वो दुविधा में है। वो कह रही थी कि शादी की उम्र निकल गई है। वो अकेले खुश है। उसकी ज़िंदगी अपने हिसाब से बिल्कुल ठीक से चल रही है। और सबसे बड़ी बात ये कि सबकी शादी क्यों होनी चाहिए?” “ठीक है, मैं शाम को चलूंगा। मैं अर्चना को समझाऊंगा कि शादी क्यों ज़रूरी है। उसे क्यों शादी कर लेनी चाहिए। मेरे समझाने से वो एक बार में समझ जाएगी।”शाम को हम तय समय पर अर्चना के घर पहुंचे। उसने हमारा स्वागत किया। रात में खाना भी वहीं खाना था, पर हम कॉफी पीते हुए ही शादी की बात करने लगे। मैंने अर्चना को समझाया कि तुम कब तक अकेली रहोगी? मां-बाप अभी तुम्हारे साथ हैं, पर एक दिन वो नहीं रहेंगे। फिर तुम एकदम अकेली पड़ जाओगी। शादी करके तुम एक से दो तो हो जाओगी, पर असल में तुम दो लोग मिल कर संपूर्ण भी हो जाओगे। मैं कॉफी की चुस्की लेते हुए एकदम संजय सिन्हा वाले स्टाइल में ज्ञान दे रहा था। मेरे पास न जाने कितनी लड़कियों की शादी कराने का अनुभव था। अपनी शादी का, अपनी साली की शादी की, अपने दोस्त की बहन की शादी का। मैं एकदम आश्वस्त था कि अर्चना के दिल तक मेरी बात पहुंच रही होगी। जब तक हम खाना खा रहे होंगे अर्चना कम से कम उस लड़के से मिलने के लिए तैयार हो जाएगी। अर्चना मेरी बातें सुनती रही। फिर उसने मुझसे कहा कि भैया, अब शादी की उम्र ही निकल चुकी है। मैंने उस लड़के से फोन पर बात की थी। मैंने उससे पूछा था कि शादी क्यों करनी है? बातचीत से मुझे ऐसा लगा कि वो परिवार बढ़ाने की चाहत रखता है। पर अब इस उम्र में ये सब संभव नहीं और अगर संभव हो भी तो चाहत नहीं। अब इस उम्र में ऐसी ज़िम्मेदारी लेने का मन नहीं। इन बातों के लिए तो देर हो ही चुकी है।मैं उसे अमेरिका की कहानी सुनाने लगा। वहां तो लोग काफी उम्र बीत जाने के बाद भी शादी करते हैं। अर्चना ने कहा कि वहां तो लोग कई-कई बार शादी करते हैं। एक से नहीं बनी, तो डाइवोर्स। पर हमारे यहां ऐसा नहीं होता। और आपने ही तो अभी एक कहानी लिखी थी कि हिंदुस्तान में शादी के बाद तलाक की गुंजाइश ही नहीं। इतना कहने के साथ ही वो हंस पड़ी।मैं गंभीर था। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम शादी के बाद नए रिश्ते की ज़िम्मेदारी से घबरा रही हो?अर्चना अचानक गंभीर हो गई। उसने बहुत संजीदगी से कहा, “भैया, मैं किसी रिश्ते की ज़िम्मेदारी से नहीं घबराती। मैं जानती हूं कि मेरी शादी अगर उससे हो जाएगी तो मैं हर हाल में उसे खुश रख सकती हूं। मैं उसकी हर कसौटी पर खरी उतरूंगी, मुझे इस बात पर रत्ती भर संदेह नहीं। मैं अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को निभा लूंगी और इसका भरोसा भी दे सकती हूं कि उसे मुझसे कभी किसी बात की तकलीफ नहीं होगी।”“फिर दुविधा कहां है?”
“मेरे मन में सिर्फ इतना सवाल है कि क्या मैं खुश रह पाऊंगी? मैं खुशी देने की गारंटी ले सकती हूं, पर खुद खुश रहने की गारंटी मेरे पास नहीं। बस यही मेरी दुविधा है। मैं ढेरों लड़कियों को जानती हूं, जिन्होंने शादी के बाद अपनी सारी खुशियों को पति और ससुराल पर न्योछावर कर दिया। पर वो खुद खुश नहीं। सच कहूं तो कइयों को ठीक से पता भी नहीं कि खुशी क्या होती है? वो शादी के बाद बच्चा पालने और रसोई संभालने में लग गईं। हमारे यहां अधिकतर लोग सिर्फ इसलिए शादी करते हैं क्योंकि सबकी शादी होती है। भैया, मेरी दुविधा इतनी सी है कि क्या मैं खुश रह पाऊंगी? अगर नहीं, तो फिर शादी करने का कोई फायदा नहीं। मैं सबकुछ निभा भले लूं, पर मेरा खुश रहना भी मेरे लिए बहुत ज़रूरी है।”मैं चुप था। मन में ढेरों सवाल उठने लगे थे। हम में से कितने लोग ये सवाल खुद से पूछते हैं कि क्या हम खुश हैं? खुद खुश रहना बहुत ज़रूरी होता है। जो खुश रहते हैं, वही खुशी दे सकते हैं। दुखी आदमी दुख बांटता है, खुश आदमी ही खुशी बांटता है। लड़कियों की शादी में हम लड़के की नौकरी, उसका परिवार देखते हैं और शादी करके खुद को ज़िम्मेदारी से मुक्त कर लेते हैं। काश हम ये देखने और समझने की कोशिश करते कि लड़की खुश भी है या सिर्फ रिश्तों को निभाती चली जा रही है? मैं अर्चना के घर से लौट आया। पर मन में ढेरों सवाल लिए हुए। 
क्या मेरी पत्नी मुझसे खुश है? मैं उसकी खुशी के लिए क्या करता हूं? मैंने उससे आखिरी बार कब पूछा था कि तुम खुश तो हो न? वो मेरा ध्यान रखती है, मेरे लिए खाना बनती है, घर की देखभाल करती है। बेटा जब तक स्कूल में रहा, उसका होमवर्क कराती रही। मेरे पिता और भाई जब तक हमारे साथ रहे, वो उनकी देखभाल करती रही। बाज़ार जाती है तो अपने लिए एक सामान खरीदने से पहले कई बार देखती है कि कहीं महंगा न हो। मेरे लिए कुछ भी खरीदना हो तो तुरंत तैयार हो जाती है। मुझे सर्दी-खांसी होती है तो सारी रात मेरी सेवा में लग जाती है। काढ़ा बनाने से लेकर पीठ पर विक्स लगाने तक। पर उसे सर्दी होती है तो मैं इतना भी नहीं पूछता कि विक्स लगा दूं क्या? मैं इतना ही कहता हूं कि सर्दी है, ठीक हो जाएगी। 
मैं संजय सिन्हा, कल से सोच रहा हूं कि अर्चना ने जो कहा, क्या सभी लड़कियां ऐसा ह
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Mukesh Poonia

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Story of Sanjay Sinha कल दफ्तर से छुट्टी थी। पत्नी ने सुबह ही पूछ लिया था कि संजय, तुम्हारा कोई प्रोग्राम तो नहीं है न? मैंने बिना कुछ सोचे समझे कह दिया था कि आज मैं एकदम फ्री हूं। कोई काम नहीं। मेरे मुंह से इतना निकलना था कि पत्नी खुश हो गई। कहने लगी कि आज तुम मेरा एक काम कर दो। तुम मेरे साथ शाम को मेरी सहेली अर्चना के घर चलना। “अर्चना के घर? मेरा क्या काम?” “अर्चना की शादी की बात करने। अर्चना दुविधा में है कि शादी करे या न करे। तुम उसे समझा सकते हो। तुम उसे समझा सकते हो कि उसे अब शादी कर लेनी चाहिए। लड़का सिंगापुर में रहता करता है। लड़का भी उसी की उम्र का है और उसकी भी शादी नहीं हुई है। ऐसे में ये जोड़ी ठीक रहेगी।”मैं अर्चना को जानता हूं। वो मेरी पत्नी की सहेली है। हमारे घर भी आती रहती है। हिंदुस्तान में लड़कियों की शादी की जो सामान्य उम्र लोगों ने तय कर रखी है, उसे वो पार कर चुकी है और अब तक उसकी शादी नहीं हुई है। कई बार घरवालों की लेटलतीफी या फिर कोई उचित मैच का नहीं मिल पाने के कारण शादी में देर हो जाती है। और जितना मुझे पता है वो अब मानसिक रूप से बिना शादी के खुश रहने लगी है। वो अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने लगी है। वो अपना काम करती है, आर्थिक रूप से पूरी तरह आत्मनिर्भर है और खुद को पूरी तरह फिट रखती है। वो योगा करती है, जिम जाती है और अपने ढंग से अपना छोटा सा बिजनेस भी संभालती है। सच तो ये है कि अब वो अपने घरवालों को भी संभालती है। पर वो जहां कहीं भी जाती है, लोग उससे सीधे-सीधे पूछ लेते हैं कि शादी कब करोगी? वो मेरी पत्नी की पक्की सहेली है और मेरी पत्नी भी इधर-उधर नज़र रखती है कि कहीं कोई अच्छा लड़का मिल जाए तो वो उससे उसकी शादी की बात चलाए। मैं कहानियां सुना-सुना कर कई लड़कियों की शादी करा चुका हूं। मेरी पत्नी ने मुझे इतना महत्वपूर्ण काम दिया तो मैं आश्वस्त था कि मैं अर्चना से मिल कर उसे शादी के लिए समझा लूंगा। मैंने पत्नी से कहा कि जब इतना अच्छा लड़का मिल गया है तो फिर अर्चना को सोचना भी क्यों? उसे तो तुरंत हां कर देनी चाहिए। “मैंने कहा न वो दुविधा में है। वो कह रही थी कि शादी की उम्र निकल गई है। वो अकेले खुश है। उसकी ज़िंदगी अपने हिसाब से बिल्कुल ठीक से चल रही है। और सबसे बड़ी बात ये कि सबकी शादी क्यों होनी चाहिए?” “ठीक है, मैं शाम को चलूंगा। मैं अर्चना को समझाऊंगा कि शादी क्यों ज़रूरी है। उसे क्यों शादी कर लेनी चाहिए। मेरे समझाने से वो एक बार में समझ जाएगी।”शाम को हम तय समय पर अर्चना के घर पहुंचे। उसने हमारा स्वागत किया। रात में खाना भी वहीं खाना था, पर हम कॉफी पीते हुए ही शादी की बात करने लगे। मैंने अर्चना को समझाया कि तुम कब तक अकेली रहोगी? मां-बाप अभी तुम्हारे साथ हैं, पर एक दिन वो नहीं रहेंगे। फिर तुम एकदम अकेली पड़ जाओगी। शादी करके तुम एक से दो तो हो जाओगी, पर असल में तुम दो लोग मिल कर संपूर्ण भी हो जाओगे। मैं कॉफी की चुस्की लेते हुए एकदम संजय सिन्हा वाले स्टाइल में ज्ञान दे रहा था। मेरे पास न जाने कितनी लड़कियों की शादी कराने का अनुभव था। अपनी शादी का, अपनी साली की शादी की, अपने दोस्त की बहन की शादी का। मैं एकदम आश्वस्त था कि अर्चना के दिल तक मेरी बात पहुंच रही होगी। जब तक हम खाना खा रहे होंगे अर्चना कम से कम उस लड़के से मिलने के लिए तैयार हो जाएगी। अर्चना मेरी बातें सुनती रही। फिर उसने मुझसे कहा कि भैया, अब शादी की उम्र ही निकल चुकी है। मैंने उस लड़के से फोन पर बात की थी। मैंने उससे पूछा था कि शादी क्यों करनी है? बातचीत से मुझे ऐसा लगा कि वो परिवार बढ़ाने की चाहत रखता है। पर अब इस उम्र में ये सब संभव नहीं और अगर संभव हो भी तो चाहत नहीं। अब इस उम्र में ऐसी ज़िम्मेदारी लेने का मन नहीं। इन बातों के लिए तो देर हो ही चुकी है।मैं उसे अमेरिका की कहानी सुनाने लगा। वहां तो लोग काफी उम्र बीत जाने के बाद भी शादी करते हैं। अर्चना ने कहा कि वहां तो लोग कई-कई बार शादी करते हैं। एक से नहीं बनी, तो डाइवोर्स। पर हमारे यहां ऐसा नहीं होता। और आपने ही तो अभी एक कहानी लिखी थी कि हिंदुस्तान में शादी के बाद तलाक की गुंजाइश ही नहीं। इतना कहने के साथ ही वो हंस पड़ी।मैं गंभीर था। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम शादी के बाद नए रिश्ते की ज़िम्मेदारी से घबरा रही हो?अर्चना अचानक गंभीर हो गई। उसने बहुत संजीदगी से कहा, “भैया, मैं किसी रिश्ते की ज़िम्मेदारी से नहीं घबराती। मैं जानती हूं कि मेरी शादी अगर उससे हो जाएगी तो मैं हर हाल में उसे खुश रख सकती हूं। मैं उसकी हर कसौटी पर खरी उतरूंगी, मुझे इस बात पर रत्ती भर संदेह नहीं। मैं अपनी सभी ज़िम्मेदारियों को निभा लूंगी और इसका भरोसा भी दे सकती हूं कि उसे मुझसे कभी किसी बात की तकलीफ नहीं होगी।”“फिर दुविधा कहां है?” “मेरे मन में सिर्फ इतना सवाल है कि क्या मैं खुश रह पाऊंगी? मैं खुशी देने की गारंटी ले सकती हूं, पर खुद खुश रहने की गारंटी मेरे पास नहीं। बस यही मेरी दुविधा है। मैं ढेरों लड़कियों को जानती हूं, जिन्होंने शादी के बाद अपनी सारी खुशियों को पति और ससुराल पर न्योछावर कर दिया। पर वो खुद खुश नहीं। सच कहूं तो कइयों को ठीक से पता भी नहीं कि खुशी क्या होती है? वो शादी के बाद बच्चा पालने और रसोई संभालने में लग गईं। हमारे यहां अधिकतर लोग सिर्फ इसलिए शादी करते हैं क्योंकि सबकी शादी होती है। भैया, मेरी दुविधा इतनी सी है कि क्या मैं खुश रह पाऊंगी? अगर नहीं, तो फिर शादी करने का कोई फायदा नहीं। मैं सबकुछ निभा भले लूं, पर मेरा खुश रहना भी मेरे लिए बहुत ज़रूरी है।”मैं चुप था। मन में ढेरों सवाल उठने लगे थे। हम में से कितने लोग ये सवाल खुद से पूछते हैं कि क्या हम खुश हैं? खुद खुश रहना बहुत ज़रूरी होता है। जो खुश रहते हैं, वही खुशी दे सकते हैं। दुखी आदमी दुख बांटता है, खुश आदमी ही खुशी बांटता है। लड़कियों की शादी में हम लड़के की नौकरी, उसका परिवार देखते हैं और शादी करके खुद को ज़िम्मेदारी से मुक्त कर लेते हैं। काश हम ये देखने और समझने की कोशिश करते कि लड़की खुश भी है या सिर्फ रिश्तों को निभाती चली जा रही है? मैं अर्चना के घर से लौट आया। पर मन में ढेरों सवाल लिए हुए।  क्या मेरी पत्नी मुझसे खुश है? मैं उसकी खुशी के लिए क्या करता हूं? मैंने उससे आखिरी बार कब पूछा था कि तुम खुश तो हो न? वो मेरा ध्यान रखती है, मेरे लिए खाना बनती है, घर की देखभाल करती है। बेटा जब तक स्कूल में रहा, उसका होमवर्क कराती रही। मेरे पिता और भाई जब तक हमारे साथ रहे, वो उनकी देखभाल करती रही। बाज़ार जाती है तो अपने लिए एक सामान खरीदने से पहले कई बार देखती है कि कहीं महंगा न हो। मेरे लिए कुछ भी खरीदना हो तो तुरंत तैयार हो जाती है। मुझे सर्दी-खांसी होती है तो सारी रात मेरी सेवा में लग जाती है। काढ़ा बनाने से लेकर पीठ पर विक्स लगाने तक। पर उसे सर्दी होती है तो मैं इतना भी नहीं पूछता कि विक्स लगा दूं क्या? मैं इतना ही कहता हूं कि सर्दी है, ठीक हो जाएगी।  मैं संजय सिन्हा, कल से सोच रहा हूं कि अर्चना ने जो कहा, क्या सभी लड़कियां ऐसा ह #News

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