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दो पतंगें जब लड़तीं हैं खुले आसमान में, तो कभी एक

दो पतंगें जब लड़तीं हैं खुले आसमान में,
तो कभी एक, तो कभी दोनों कट जाती हैं।
ज़मी पे आते-आते लुट और फट जाती है।
रंजिशों में इंसानियत भी ऐसे ही बंट जाती है।।

पतंग की खूबसूरती है आसमां पे उड़ने में,
डोर से पूछो दर्द कितना होता बिछुड़ने में।
तो दिल में निश्चल प्रेम का आभास रक्खो।
रिश्तों में सदा तिल-गुड़ सी मिठास रक्खो।।
विनोद विद्रोही 
नागपुर 
मकर संक्रांति की ढेरों शुभकामनाएं।
दो पतंगें जब लड़तीं हैं खुले आसमान में,
तो कभी एक, तो कभी दोनों कट जाती हैं।
ज़मी पे आते-आते लुट और फट जाती है।
रंजिशों में इंसानियत भी ऐसे ही बंट जाती है।।

पतंग की खूबसूरती है आसमां पे उड़ने में,
डोर से पूछो दर्द कितना होता बिछुड़ने में।
तो दिल में निश्चल प्रेम का आभास रक्खो।
रिश्तों में सदा तिल-गुड़ सी मिठास रक्खो।।
विनोद विद्रोही 
नागपुर 
मकर संक्रांति की ढेरों शुभकामनाएं।