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मेरा ज़मीर मेरा ऐतबार बोलता है... मेरी ज़ुबान से परव

मेरा ज़मीर मेरा ऐतबार बोलता है...
मेरी ज़ुबान से परवरदिगार बोलता है...
तेरी ज़ुबान कतरना बोहोत ज़रूरी है...
तुझे मर्ज है कि तू बार बार बोलता है...
कुछ और काम तो उसे आता ही नहीं...
पर वो झूठ बोहोत शानदार बोलता है...
मै मन की बात बोहोत मन लगा के सुनता हूं...
पर ये तू नही तेरा इश्तेहार बोलता है...
मेरा ज़मीर मेरा ऐतबार बोलता है...
मेरी ज़ुबान से परवरदिगार बोलता है...
तेरी ज़ुबान कतरना बोहोत ज़रूरी है...
तुझे मर्ज है कि तू बार बार बोलता है...
कुछ और काम तो उसे आता ही नहीं...
पर वो झूठ बोहोत शानदार बोलता है...
मै मन की बात बोहोत मन लगा के सुनता हूं...
पर ये तू नही तेरा इश्तेहार बोलता है...