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मुसाफ़िर सा भटकता इन राहों में, सफ़र ना जाने कितना म

मुसाफ़िर सा भटकता इन राहों में,
सफ़र ना जाने कितना मील दूर है मंजिल का।

कुछ अरमान लिए निकला हुँ घर से,
कुछ मंजिलों के मील उंगलियों पर गिन कर।

वो सपनें सच करने जो देखें है,पिता ने भूख मार कर,
खेतों में हल जोत कर,शहर में मजदूरी पर भूख मार कर। good evening
मुसाफ़िर सा भटकता इन राहों में,
सफ़र ना जाने कितना मील दूर है मंजिल का।

कुछ अरमान लिए निकला हुँ घर से,
कुछ मंजिलों के मील उंगलियों पर गिन कर।

वो सपनें सच करने जो देखें है,पिता ने भूख मार कर,
खेतों में हल जोत कर,शहर में मजदूरी पर भूख मार कर। good evening