शास्वत हो अडिग हो, अंतिम पथ हो तुम मैं हूँ मिट्टी सा , कण कण में बसती हो तुम भय से स्वीकार लू, या कह दू नियति हो तुम, इस जगत की सांसो का , अद्भुत ,अकाट्य सत्य ही ,हो तुम ।। "मृत्यु" इस नश्वर तन की, विचारो कर्मो की अविस्मरणीय याद हो तुम ।।