****सत्यकथा*** पिछले बरस भी कुछ लोगों को देखा था 31 दिसंबर को फुटपाथ पर सोते हुए।इस बार भी ठिठुरते हुए देखकर ये सोच रहा हूँ कि किस बात की खुशी मनाऊँ? चेहरे बदलते हैं मगर मंजर वही रहते है।