मैं गर तुम्हें पतंग कह्ँ बहुत मुमकिन है कि तुम मुझे डोर कह दो पर नहीं मैं डोर नहीं आकाश ह्ँ तुम विचरती हो मुझ में तुम मैं बन्धन युक्त उत्थान देने वाली डोर नहीं उन्मुक्त विस्तार देने वाला नील-गगन ह्ँ