|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12
।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना
'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।
राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च
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Anil Siwach
।।श्री हरिः।।
44 - नित्य मिलन
श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो।
मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं।
भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि
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।।श्री हरिः।।
41 - बताऊँ?
मैया अपने लाल के "बताऊं" से घबड़ाती है। वह जानती है कि यह चपल "बताऊँ" कहकर पता नहीं क्या-क्या बललाने लगेगा और फिर स्नान कलेऊ सब भूल जाएगा।
'बताऊं मैया!' कन्हाई के कहते ही मैया हंसकर कह देती है - 'अभी तू अपना बतलाना रहने दे। पहिले हाथ-मुख धो और कुछ खा। दिन भर तो वनमें घूमता रहा है, तुझे भूख लगी होगी।'
'बताऊँ मैया, यह तोक कैसे फुदकता है।' कृष्ण को प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ बतलाना रहता है। वन से लौटते ही मैया के कण्ठ से जा लिपटता है और फिर कुछ बतलाना चाहता है। बतलाने की सैं
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|| श्री हरि: ||
28 - स्पर्धा
कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो।
अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी।
'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी
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।।श्री हरिः।।
17 - शीत में
इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले
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।।श्री हरिः।।
15 - नहीं करेगा
'तू लाठी चलाना सीख ले।' वरूथप ने कहा। ब्रजराजकुमार को ही लाठी चलाना न आवे, यह कोई अच्छी बात है? गोपबालक को मल्लयुद्ध और लाठी चलाने में निपुण होना ही चाहिये।
'सिखायेगा तू?' कन्हाई प्रस्तुत हो गया है। इसका वेत्र-लकुट इस काम का नहीं है तो क्या हो गया। वरूथप ने ही इसे भद्रका लकुट ले लेने को कह दिया।
भद्र, वरूथप, विशाल गोपकुमारों में सबसे अच्छी लाठी चलाते हैं। वैसे तो नन्हा तोक भी अब वेत्र-लकुट घुमाने लगा है; किन्तु कन्हाई इस आवश्यक कला की शिक्षा के लिये प्रस्तुत ही न #Books
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|| श्री हरि: ||
60 - ऊंघ
'राम, दूध पी ले बेटा! तू दूध पीयेगा तो श्याम भी पीयेगा।' माता रोहिणी अपने आगे बैठाये है अपने स्वर्णगौर कुमार को। दाऊ दोनों चरण आधे मोड़े बैठ गया है और उसके दोनों हाथ भी दूध के कटोरे पर हैं, किंतु नेत्र बंद हैं। अलकें बिखरी हैं मुखपर। वह अधर कटोरे पर लगाकर भी ऊंघ रहा है। माता अपने हाथ से कटोरा सम्हाले है और बार-बार स्नेहपूर्वक दूध पी लेने के लिए कह रही है।
'तू दूध पीयेगा तो श्याम भी पीयेगा।' नींद के वेग में भी दाऊ जैसे कुछ न कुछ समझ लेता है इस बात को। उसके अधर हिल जाते #Books
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Anil Siwach
44 - दादा को बुलाऊं?
|| श्री हरि: ||
'तू छोड़ दे मुझे।' आज यह नवनीत चोर पकड़ा गया है। अकेला आया था इस घर में। किंतु माखन अभी निकला नहीं था। दही मथते - मथते बीच में किसी काम से पात्र में ही मथानी छोड़कर गोपिका घर में चली गई और यह आ पहुंचा। गोपी ने लौटते ही इसे पात्र में हाथ डालते देख लिया और धीरे से पीछे आकर पकड़ लिया है इसका यह दही में डूबा दाहिना हाथ।
'तू मेरे घर में क्यों आया? मेरे मटके में हाथ क्यों डाला तूने?' गोपी भला ऐसे कैसे रोब में आ जाय? यह ढ़ाई वर्ष का कृष्ण उसके घर में चोरी करने #Books