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।।श्री हरिः।। 17 - शीत में इस शीत ऋतु में गायों,

।।श्री हरिः।।
17 - शीत में

इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। लेकिन शीतोत्थ रोम-राजि परस्पर सटते-सटाते पशु शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं और पृथक-पृथक चलने लगते हैं, क्योंकि आजकल गोप उन्हें कुछ दिन चढने पर ही खोलते हैं।

गोप बालक भले सूर्योदय होते ही नन्द-भवन आ जायें, मैया कन्हाई को इन दिनों शीत में सवेरे-सवेरे तो निकलने नहीं दे सकती। वह देर तक तो राम-श्याम को अंक से ही नहीं छोड़ती।

मैया के अंक में स्थान का अभाव कहाँ हैं? जो सखा आते हैं, मैया उन्हें भी रजाई के भीतर बुला लेती है और यह संख्या बढ़ती जाती है। कन्हाईं ही रजाई फेंककर उठ खडा होता है।
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

।।श्री हरिः।। 17 - शीत में इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। लेकिन शीतोत्थ रोम-राजि परस्पर सटते-सटाते पशु शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं और पृथक-पृथक चलने लगते हैं, क्योंकि आजकल गोप उन्हें कुछ दिन चढने पर ही खोलते हैं। गोप बालक भले सूर्योदय होते ही नन्द-भवन आ जायें, मैया कन्हाई को इन दिनों शीत में सवेरे-सवेरे तो निकलने नहीं दे सकती। वह देर तक तो राम-श्याम को अंक से ही नहीं छोड़ती। मैया के अंक में स्थान का अभाव कहाँ हैं? जो सखा आते हैं, मैया उन्हें भी रजाई के भीतर बुला लेती है और यह संख्या बढ़ती जाती है। कन्हाईं ही रजाई फेंककर उठ खडा होता है।

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