समाजशास्त्री लेखक डॉ रितु सरस्वत ने झूठे आरोप को सच मानने की प्रवृत्ति में कहा है कि कट्टरपंथी नारीवादी समर्थकों को यह समझना जरूरी है कि स्त्री-पुरुष के बीच विभेद की जो विध्वनशक रेखा हुनर कीजिए वह किसी के लिए भी हितकारी नहीं है समानता का संघर्ष बुरे और अच्छे के भेद पर टिका होना चाहिए ना कि स्त्री और पुरुष के अंतर पर स्त्री और पुरुष को जब तक एक दूसरे के विरुद्ध खड़े किए जाने की प्रवृत्ति का त्याग नहीं हुआ तब तक लैंगिक समानता अपना अस्तित्व तलाश थी रहेगी नारी की लैंगिक समानता की लहर के ऊपर एक नारी का तर्कसंगत लेख है कुछ ऐसे ही अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक को लेकर तुष्टिकरण और दृष्टि प्रचार हमारे तथ्य करती समाजवादी नेता समाज को बांटने की राजनीति करते हैं ©Ek villain #SAD #समानता का दुष्प्रचार