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मन के वेगों का अश्व जब चलता है अंतर्मन के तल से तब

मन के वेगों का
अश्व जब चलता है
अंतर्मन के तल से
तब 
उठता है
एक द्वंद
एक दम्भ
कुछ उलझनें
कुछ सुलझे
कुछ उलझे पहलू।
फिर
तटस्थ सा
वो साक्षी भाव
जो मेरे होने
और 
मन की उठापटक को 
पृथक सा करता है।।

©AD Rao #मन के वेग
मन के वेगों का
अश्व जब चलता है
अंतर्मन के तल से
तब 
उठता है
एक द्वंद
एक दम्भ
कुछ उलझनें
कुछ सुलझे
कुछ उलझे पहलू।
फिर
तटस्थ सा
वो साक्षी भाव
जो मेरे होने
और 
मन की उठापटक को 
पृथक सा करता है।।

©AD Rao #मन के वेग