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फिर कोई शय शहर की गलियों में बदहवाश ना दिखती, ज़हर

फिर कोई शय शहर की गलियों में बदहवाश ना दिखती, 
ज़हर होकर भी मधुशालाओं में जो शराब ना बिकती, 
कुछ एक घरों के बच्चे जो खुद ही खुद में ना होकर
 मुजरिम हो गए, ना होते! 
फिर क्या ही होता हम अर्थव्यवस्था की सुची में 
कुछ पायदान और गिर गए होते।

©Pràteek Siñgh
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