White बिकती है ना कहीं खुशी ना कहीं गम बिकता है लोग गलत फेमी में है कि शायद कहीं महरम बिकता है इन्सान उम्मीदों से बंधा हुआ एक जिदी परिंदा है वो उम्मीदों से ही धायल है और उम्मीदों पर ही जिंदा है ©Revashankar Nathani न कहीं की खुशी बिकती है ना कही गम