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कल, ​साँझ ढ़ले, ​बहती सरिता ने, ​अँगड़ाई ली, ​और..आक

कल,
​साँझ ढ़ले,
​बहती सरिता ने,
​अँगड़ाई ली,
​और..आकर अपने,
​निर्मल जल से,
​धरती के पग पखारने लगी,
​
​कल,
​साँझ ढ़ले,
​सूरज की सिंदूरी किरणों ने,
शगुन की ​मेंहदी रच दी,
​दहलीज पर मेरे,
​चाँदनी जब आयी आँगन मे,
​खिल उठी कुमुदिनी,
​और..महकने लगी,
​मन की बगिया मेरी, कल,
​साँझ ढ़ले,
​सूरज की सिंदूरी किरणों ने,
शगुन की ​मेंहदी रच दी,
​दहलीज पर मेरे,
​चाँदनी जब आयी आँगन मे,
​खिल उठी कुमुदिनी,
​और..महकने लगी,
कल,
​साँझ ढ़ले,
​बहती सरिता ने,
​अँगड़ाई ली,
​और..आकर अपने,
​निर्मल जल से,
​धरती के पग पखारने लगी,
​
​कल,
​साँझ ढ़ले,
​सूरज की सिंदूरी किरणों ने,
शगुन की ​मेंहदी रच दी,
​दहलीज पर मेरे,
​चाँदनी जब आयी आँगन मे,
​खिल उठी कुमुदिनी,
​और..महकने लगी,
​मन की बगिया मेरी, कल,
​साँझ ढ़ले,
​सूरज की सिंदूरी किरणों ने,
शगुन की ​मेंहदी रच दी,
​दहलीज पर मेरे,
​चाँदनी जब आयी आँगन मे,
​खिल उठी कुमुदिनी,
​और..महकने लगी,
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