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शुकून......की चाह कुछ मुरझाईं दास्तां.... बंद आंखो

शुकून......की चाह
कुछ मुरझाईं दास्तां....
बंद आंखों के सपने
तो कभी खुली आंखों के ख्वाब
दोनों की अपनी अपनी पहेली
और उन पलों के कश्मकश में फसा हुआ विचलित मन
कभी भाव भीभोर होता हुआ भावावेश 
तो कभी नैनों में गोते लगाते अश्रु 
बड़ा ही विचित्र सा दृश्य होने पर भी 
लगे सिर्फ तुम्हे ही मनभावन।।

©madhavi Gupta
  मनोस्मृति #

मनोस्मृति # #विचार

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