तुम नहीं हो कोई अरमानों का शहर, जहाँ मेरा मन भटका रहता है, तुम हो मेरे गाँव की सादगी, जहाँ मेरा चित् अटका रहता है। तुम नहीं हो कोई बनावटी मूरत, जिसे मेरी आँखें निहारती रहती है, तुम हो कोई सच्चाई की प्रतिच्छाया, जहाँ मेरी रूह टिकी रहती है। (कैप्शन में पढ़े) तुम नहीं हो कोई अरमानों का शहर, जहाँ मेरा मन भटका रहता है, तुम हो मेरे गाँव की सादगी, जहाँ मेरा चित् अटका रहता है। तुम नहीं हो