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छूट भी सकती आदत तेरी, पर नहीं मेरी छूटेगी छूटेगी

छूट भी सकती आदत तेरी, पर नहीं मेरी छूटेगी 
छूटेगी तब जा के कहीं जब, डोरी स्वाँस की टूटेगी 
लेकिन उससे पहले तेरे उपर गीत लिखूंगा वो 
सुन के जिसको जग झूमेगा , सुनके तूँ भी  झूमेगी

लाखों में किसी के उपर ही, शायर कुछ भी लिखता है
लिखता है वो किस दर्जे का, जग वाले को दिखता है
उन लाखों में एक है तूँ भी, उपर जिसके दीवाना
तुझपे मुक्तक लिक्खे जाता, अरु आंसू में भीगता है

©प्रभात शर्मा
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