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नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ

नाटक.. 
रंगमंच... 
कलाकार... 
कला... 
दर्शक.. 
कुछ ऐसा हुआ, 
में रंगमंच पे खड़ी थी, 
और मेरी कला मेरा हाथ थामे |
दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. 
क्या खूब कला थी, 
खुदा की देख हुआ करती थी |
एक बार बोली बात, 
में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, 
कला थी.. 
वचन निभाने की, 
नाटक बन गयी.. 
रंगमंच पे उस खुदा के, 
में आज एक कटपुतली बन गयी...
वचन निभाती नहीं, 
ऐसा सुना है मेने, 
दर्शकों से |
क्या कहु, 
कला खो गयी, 
पर ये कला उनके लिए कायम है,
जो सही में आज भी वचन को समझते है |
कला खुदा की देन होती है, 
खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. 

-अज़नबी किताब नाटक..
नाटक.. 
रंगमंच... 
कलाकार... 
कला... 
दर्शक.. 
कुछ ऐसा हुआ, 
में रंगमंच पे खड़ी थी, 
और मेरी कला मेरा हाथ थामे |
दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. 
क्या खूब कला थी, 
खुदा की देख हुआ करती थी |
एक बार बोली बात, 
में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, 
कला थी.. 
वचन निभाने की, 
नाटक बन गयी.. 
रंगमंच पे उस खुदा के, 
में आज एक कटपुतली बन गयी...
वचन निभाती नहीं, 
ऐसा सुना है मेने, 
दर्शकों से |
क्या कहु, 
कला खो गयी, 
पर ये कला उनके लिए कायम है,
जो सही में आज भी वचन को समझते है |
कला खुदा की देन होती है, 
खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. 

-अज़नबी किताब नाटक..

नाटक..