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वह कर्ज था तन के जिसे मैं चुका रहा हूं ! प्यासी थी

वह कर्ज था तन के जिसे मैं चुका रहा हूं ! प्यासी थी धरती जिससे मैं लहू पिला रहा हूं !! दुख भरी शायरी
वह कर्ज था तन के जिसे मैं चुका रहा हूं ! प्यासी थी धरती जिससे मैं लहू पिला रहा हूं !! दुख भरी शायरी
nareshraj9887

naresh.singh

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दुख भरी शायरी