ये ज़ख़्मे-ए दिल लिए फिरता हूं तेरी फ़िराक़ में..। अंधेरा बहुत है इन तन्हाइयों के सफ़र में, पर क्या करें इतनी-सी रोशनी कहां है.. आजकल के इन चिराग़ में...।। #ज़ख्म_ए_लफ्ज़