करके सोलह श्रृंगार, ताकती हूं द्वार, साजन नींद नहीं नैनन में, मेघा बरस रहे मधुवन में, खनक उठती हैं चूड़ियां, कर उठती है पैजनियां झनकार, बिजली चमके,बिंदिया दमके, मन मेरा बहके, मांग का टीका, रोली चंदन,हाथ की मेंहदी, साजन तुझ बिन सब कुछ फीका, चैन नहीं अब बिरहन को, भादों आया भूल गई सावन को, दिल धड़क रहा है बार बार, साजन जल्दी आओ अबकी बार। सोलह श्रृंगार