भूख सताई दिन रात लेकिन जब भोजन सहज ही ना मिल पाई दिनभर गदहा जइसन खटला पर भी लोगन के अराम ना मिल पाई जब खुबे पईसा रहला पर भी लोग भोजन खातिर तरस के रह जाई तब जाके एह लोगन के किसान के कीमत समझ में आई जब दाल गेंहू आ धान ना मिली सबकर चूल्हा ठंडा हो जाई धन दौलत सबकुछ होखल पर भी अन्न के एको दाना ना मिल पाई भूखे पेट जब सुते के पड़ी पर बिन खइले रतिया ना कट पायी तब जाके एह लोगन के किसान के कीमत समझ मे आयी जेकरा से सबके अन्न मिलेला आज ओकर ही मजाक बनत बा कर्ज चढ़ल बा माथा पर किसान भईल ओकर अभिशाप बनल बा जब ना अनाज बिकिहे मंडी में खुद के परिवार भर खातिर ही खेत बोआई तब जाके एह लोगन के किसान के कीमत समझ मे आयी राजनीति त बहुत भइल पर पर हमनी के घर छवा ना पाईल जे जे बनत रहे हमनी के नेता जितला के बाद नजर ना आइल गर जान जाई त जा लेकिन हमनी के इज्जत अब जियान ना जाई तब जाके एह लोगन के किसान के कीमत समझ मे आयी अंकुर तिवारी देवरिया, उत्तर प्रदेश ©Ankur tiwari #former #Isupoortformers #SunSet