हर एक पन्ना खोलूंगा, हर एक बात बोलुंगा, छुपा अब जो कुछ भी है, मैं उसे सरे-आम तोलूंगा, बेवफ़ा हो तुम, हक़ से कहूंगा, तुम्हें क्या लगा ख़ुद की बेज्जती, मैं चुप-चाप सहुगां, इश्क़ भी सिद्दत से किया था, नफ़रत भी बेइंतहा करूंगा, वादे ये झूठे सारे, मैं मुकम्मल भी ख़ुद से करुंगा, मैं सह लूंगा सारी बातें तेरी, पर मुझपे लगाएं तोहमते मैं हरगिज़ नही सहूंगा। हर एक पन्ना खोलूंगा, हर एक बात बोलुंगा, छुपा अब जो कुछ भी है, मैं उसे सरे-आम तोलूंगा, बेवफ़ा हो तुम, हक़ से कहूंगा,