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मिलना अब उनसे हमारे नसीब में कहा लिखा, थी ख़ुदा कि

मिलना अब उनसे हमारे नसीब में कहा लिखा,
थी ख़ुदा कि मेहरबानी जब वो मिले थे मुझे कभी।
या थी मेरी किस्मत यह बात भी एक राज़ ही रह,
गई जब हुआ मैं उनसे कुछ इस तरह जुदा कभी।

ना रहा कोई मेरा ठिकाना कि हुआ क्या और कैसे,
हुआ कि वो बस एक सपना बनकर रह गए मेरे सारे।
अरमान जब देखी मैंने उनकी जलती हुई चिता जैसे,
बह गए मेरे ख़्वाब जो उन्होने कभी देखे थे मेरे सहारे।

अब तो बस एक उनकी याद है जो रहती हर पल साथ,
है जो मेरे जीने का सहारा सा लगता है और कुछ लकीरे।
जो खींची थी ख़ुदा मेरी ज़िंदगी कि कहानी लिखते हुए हाथ,
छूटा उनका और बन गया था मैं जैसे कि हो बोलती तस्वीरें। पता नहीं आज़ कल क्या लिख रहा हूं समझ नहीं आता,
पर लिखता हूं कुछ बातें उनके नाम से जो ना हो सका मेरा।
यह कैसा रिश्ता बनाया तुने मेरा ओ मिरे ख़ुदा काश समझ पाता,
तेरे दिए हुए वो सारे इशारों को तो नही टूटता रिश्ता उनसे मेरा।

साथ था छूटा और दिल भी था टूटा पर रह ना सका मैं उनसे ख़फा,
कभी करले तु भी अब अपनी मनमानी ऐ ज़ालिम ख़ुदा मेरे साथ भी।
या करदे तु अपना रहम मेरे साथ होकर मेहरबान उनके लिए एक दफां,
मिलना अब उनसे हमारे नसीब में कहा लिखा,
थी ख़ुदा कि मेहरबानी जब वो मिले थे मुझे कभी।
या थी मेरी किस्मत यह बात भी एक राज़ ही रह,
गई जब हुआ मैं उनसे कुछ इस तरह जुदा कभी।

ना रहा कोई मेरा ठिकाना कि हुआ क्या और कैसे,
हुआ कि वो बस एक सपना बनकर रह गए मेरे सारे।
अरमान जब देखी मैंने उनकी जलती हुई चिता जैसे,
बह गए मेरे ख़्वाब जो उन्होने कभी देखे थे मेरे सहारे।

अब तो बस एक उनकी याद है जो रहती हर पल साथ,
है जो मेरे जीने का सहारा सा लगता है और कुछ लकीरे।
जो खींची थी ख़ुदा मेरी ज़िंदगी कि कहानी लिखते हुए हाथ,
छूटा उनका और बन गया था मैं जैसे कि हो बोलती तस्वीरें। पता नहीं आज़ कल क्या लिख रहा हूं समझ नहीं आता,
पर लिखता हूं कुछ बातें उनके नाम से जो ना हो सका मेरा।
यह कैसा रिश्ता बनाया तुने मेरा ओ मिरे ख़ुदा काश समझ पाता,
तेरे दिए हुए वो सारे इशारों को तो नही टूटता रिश्ता उनसे मेरा।

साथ था छूटा और दिल भी था टूटा पर रह ना सका मैं उनसे ख़फा,
कभी करले तु भी अब अपनी मनमानी ऐ ज़ालिम ख़ुदा मेरे साथ भी।
या करदे तु अपना रहम मेरे साथ होकर मेहरबान उनके लिए एक दफां,