Nojoto: Largest Storytelling Platform

मैंने की बार-बार गिरा,सँभला,उठा अनेक बार कोई अपना

मैंने की बार-बार
गिरा,सँभला,उठा अनेक बार
कोई अपना था जो
हर बार गिराने की कोशिश करता
कोई था पराया जो
हर बार उठाने का प्रयास करता
चलता रहा पथ पर
ठोकरें खाकर अनेक बार
इस इंतजार में कि
मंजिल तो मिलेगी ही आज नहीं तो कल

©DR. LAVKESH GANDHI
  #पथ #
# चला था मंजिल पथ पर #

पथ # # चला था मंजिल पथ पर #

491 Views