मेरे दादाजी ©Divya Joshi मेरे दादाजी रौबीले और खुशमिजाज़ व्यक्तित्व के धनी थे। बागवानी के खूब शौकीन।ऐसा कोई पेड़ पौधा नहीं होगा जिसे उनके हाथों ने न सींचा हो। उनके साथ बीता वक़्त बहुत ही सुन्दर रहा। हम भाई बहनों में मुझ पर उनका विशेष प्रेम रहा। उनके रहते मुझे सुबह जल्दी उठने के लिए कभी अलार्म की जरूरत महसूस नहीं हुई।मुझे किसी भी समय उठना हो बस उन्हें बताने की देर रहती और ठीक उसी वक़्त उनकी आवाज सुबह मेरे कानों तक पहुँच ही जाया करती थी। उनका आवाज रुपी अलार्म कभी गलत नहीं हुआ। उनके साथ की यादें तो बहुत हैं, सभी शामिल न कर कर पाई मगर कुछ बातों के जिक्र के साथ, मेरे मन से निकले ये मोती आज इस कविता रूप में पिरोकर उन्हें सादर नमन के साथ समर्पित कर रही हूँ । भूला बिसरा आज सब याद आ गया, वो आपके साथ पेड़ से जाम तोड़ने वाला मुझे आज ख्वाब आ गया। ख्वाब में आप, मैं सभी थे पर वो जाम आम के पेड़ नहीं थे।