अब अलग हैं उस घर से भी , जिसमें कई निशानी छोड़ी हैं । जब-जब ही छोड़ा घर तोे , साथ में कई कहानी छोड़ी हैं । जो अपना था, या पराया था? अक्सर यादों में समाया था । जहाँ दीवारों की टेक से बैठे,बिस्तर खिड़की तरफ लगाया था । गलियारों में खेले थे क्रिकेट, मैदान ही उसे बनाया था । क्यारी में करते थे वृक्षारोपण,पूजा के फूल भी लाया था । बत्ती के जाने पर न जाने, वहाँ कितनी चीजें तोड़ी है । जब-जब ही छोड़ा घर तो , साथ में कई कहानी छोड़ी है । जब भी जाते थे बाहर,तो कुछ पल में ही याद सताती थी । घर आकर के ज्यों बैठे , त्यों माँ खाना ले आती थीं। जहाँ बाबा के थोड़ा चिल्लाने पर,दादी उनसे लड़ जाती थीं। चाचा संग घूम के खुश होते और बुआ जी ढंग से पढ़ाती थीं । उन चहारदीवारों में भी न, जाने कितनी यादें जोड़ी है। जब-जब ही छोड़ा घर तो, साथ मे कई कहानी छोड़ी हैं । #बचपन का घर