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अब अलग हैं उस घर से भी , जिसमें कई निशानी छोड़ी हैं

अब अलग हैं उस घर से भी ,
जिसमें कई निशानी छोड़ी हैं ।
जब-जब ही छोड़ा घर तोे ,
साथ में कई कहानी छोड़ी हैं ।

जो अपना था, या पराया था? अक्सर यादों में समाया था ।
जहाँ दीवारों की टेक से बैठे,बिस्तर खिड़की तरफ लगाया था ।
गलियारों में खेले थे क्रिकेट, मैदान ही उसे बनाया था ।
क्यारी में करते थे वृक्षारोपण,पूजा के फूल भी लाया था ।

बत्ती के जाने पर न जाने,
वहाँ कितनी चीजें तोड़ी है ।
जब-जब ही छोड़ा घर तो ,
साथ में कई कहानी छोड़ी है ।

जब भी जाते थे बाहर,तो कुछ पल में ही याद सताती थी ।
घर आकर के ज्यों बैठे , त्यों माँ खाना ले आती थीं।
जहाँ बाबा के थोड़ा चिल्लाने पर,दादी उनसे लड़ जाती थीं।
चाचा संग घूम के खुश होते और बुआ जी ढंग से पढ़ाती थीं ।

उन चहारदीवारों में भी न,
जाने कितनी यादें जोड़ी है।
जब-जब ही छोड़ा घर तो,
साथ मे कई कहानी छोड़ी हैं । #बचपन का घर
अब अलग हैं उस घर से भी ,
जिसमें कई निशानी छोड़ी हैं ।
जब-जब ही छोड़ा घर तोे ,
साथ में कई कहानी छोड़ी हैं ।

जो अपना था, या पराया था? अक्सर यादों में समाया था ।
जहाँ दीवारों की टेक से बैठे,बिस्तर खिड़की तरफ लगाया था ।
गलियारों में खेले थे क्रिकेट, मैदान ही उसे बनाया था ।
क्यारी में करते थे वृक्षारोपण,पूजा के फूल भी लाया था ।

बत्ती के जाने पर न जाने,
वहाँ कितनी चीजें तोड़ी है ।
जब-जब ही छोड़ा घर तो ,
साथ में कई कहानी छोड़ी है ।

जब भी जाते थे बाहर,तो कुछ पल में ही याद सताती थी ।
घर आकर के ज्यों बैठे , त्यों माँ खाना ले आती थीं।
जहाँ बाबा के थोड़ा चिल्लाने पर,दादी उनसे लड़ जाती थीं।
चाचा संग घूम के खुश होते और बुआ जी ढंग से पढ़ाती थीं ।

उन चहारदीवारों में भी न,
जाने कितनी यादें जोड़ी है।
जब-जब ही छोड़ा घर तो,
साथ मे कई कहानी छोड़ी हैं । #बचपन का घर
shubham6499

Shubham

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