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मैं स्त्री हूँ साधु कहे ईश्वर की माया,पुरुषों के

मैं स्त्री हूँ 

साधु कहे ईश्वर की माया,पुरुषों के लिए काया 
समाज के लिए निर्बल निर्भर,तांत्रिक कहते छाया

माँ पिता को बोझ लगू, भाई कहे मुझे छोरी,
फिल्मों में किरदार भी मेरा, छैल छबीली गोरी,

सामंतों की रूचि मैं,जनगणना की सूची हूँ 
जिस घर में बालक की आशा, उनके लिए अरुचि हूँ 

पति है स्वामी, मैं हूँ दासी, ससुराल के लिए दहेज की राशि,
स्वाभिमान और सम्मान के खातिर, रहती हूँ हर क्षण मैं प्यासी,

संविधान में लिंग की समता,साहित्य के लिए विमर्श हूँ मैं ,
पड़ोसी के लिए कैलेंडर का, बढ़ता जाता वर्ष हूँ मैं,

 माता-पिता कहे मैं हूँ परायी, सास ससुर कहे बाहरवाली
 बेटी बहू बहन और माता, रिश्ते सारे लगते जाली

 समाज कहे प्रतीक हूं मैं, त्याग सेवा लज्जा की 
 आभूषण कहते है मुझसे, प्रतीक हूं केवल सज्जा की 

 स्त्री कहती है की मैं, परंपराओ की रक्षक हूं
 पितृसत्ता कहती मुझसे, केवल उनकी भक्षक  हूँ

 विद्रोह करू तो बेशर्म,असंस्कारी, चुपचाप सहूँ तो दुःख दे भारी
 व्रत उपवास हमारे हिस्से, पुरुष बना मंदिर का पुजारी

 देवदासी प्रथा ने मुझको, इतना ज्यादा झकझोरा है
 भक्ति के ही कफन में मुझको, लाश बना कर छोड़ा है

 बोली मेरी भी लगती है, बेची जाती हूं बाजारों में
 सांसे घुटती रहती हर क्षण, जिंदा रहती हूं नारों में

 अनमोल चीज व्यापार की हूं, शायद कोई उपहार भी हूं
 है दीन हीन दशा तो क्या, मैं जिन्दा कारोबार भी हूँ

 मत मेरा मेरा न होता, छत मेरा मेरा न होता
 मिला नहीं गर कोई समर्थन, पथ मेरा मेरा न होता

 खुद के लिए मैं स्वयं समाजिक, धारणाओं की बंधक हूं
 सब कुछ अनदेखा कर सहती, मैं तो सचमुच ही अंधक हूं

©Priya Kumari Niharika # मैं स्त्री हूं
मैं स्त्री हूँ 

साधु कहे ईश्वर की माया,पुरुषों के लिए काया 
समाज के लिए निर्बल निर्भर,तांत्रिक कहते छाया

माँ पिता को बोझ लगू, भाई कहे मुझे छोरी,
फिल्मों में किरदार भी मेरा, छैल छबीली गोरी,
मैं स्त्री हूँ 

साधु कहे ईश्वर की माया,पुरुषों के लिए काया 
समाज के लिए निर्बल निर्भर,तांत्रिक कहते छाया

माँ पिता को बोझ लगू, भाई कहे मुझे छोरी,
फिल्मों में किरदार भी मेरा, छैल छबीली गोरी,

सामंतों की रूचि मैं,जनगणना की सूची हूँ 
जिस घर में बालक की आशा, उनके लिए अरुचि हूँ 

पति है स्वामी, मैं हूँ दासी, ससुराल के लिए दहेज की राशि,
स्वाभिमान और सम्मान के खातिर, रहती हूँ हर क्षण मैं प्यासी,

संविधान में लिंग की समता,साहित्य के लिए विमर्श हूँ मैं ,
पड़ोसी के लिए कैलेंडर का, बढ़ता जाता वर्ष हूँ मैं,

 माता-पिता कहे मैं हूँ परायी, सास ससुर कहे बाहरवाली
 बेटी बहू बहन और माता, रिश्ते सारे लगते जाली

 समाज कहे प्रतीक हूं मैं, त्याग सेवा लज्जा की 
 आभूषण कहते है मुझसे, प्रतीक हूं केवल सज्जा की 

 स्त्री कहती है की मैं, परंपराओ की रक्षक हूं
 पितृसत्ता कहती मुझसे, केवल उनकी भक्षक  हूँ

 विद्रोह करू तो बेशर्म,असंस्कारी, चुपचाप सहूँ तो दुःख दे भारी
 व्रत उपवास हमारे हिस्से, पुरुष बना मंदिर का पुजारी

 देवदासी प्रथा ने मुझको, इतना ज्यादा झकझोरा है
 भक्ति के ही कफन में मुझको, लाश बना कर छोड़ा है

 बोली मेरी भी लगती है, बेची जाती हूं बाजारों में
 सांसे घुटती रहती हर क्षण, जिंदा रहती हूं नारों में

 अनमोल चीज व्यापार की हूं, शायद कोई उपहार भी हूं
 है दीन हीन दशा तो क्या, मैं जिन्दा कारोबार भी हूँ

 मत मेरा मेरा न होता, छत मेरा मेरा न होता
 मिला नहीं गर कोई समर्थन, पथ मेरा मेरा न होता

 खुद के लिए मैं स्वयं समाजिक, धारणाओं की बंधक हूं
 सब कुछ अनदेखा कर सहती, मैं तो सचमुच ही अंधक हूं

©Priya Kumari Niharika # मैं स्त्री हूं
मैं स्त्री हूँ 

साधु कहे ईश्वर की माया,पुरुषों के लिए काया 
समाज के लिए निर्बल निर्भर,तांत्रिक कहते छाया

माँ पिता को बोझ लगू, भाई कहे मुझे छोरी,
फिल्मों में किरदार भी मेरा, छैल छबीली गोरी,