अब तुम भूल गए वो दिन जब में तुम्हारी दी हुई रुमाल को अपने तकिए के नीचे रख के सोया करता था.. जब याद तुम्हारी आए तो चुप चुप के रोया करता था.... अब तो बस तुम्हारे बिन तन्हा तन्हा सा लगता हैं.... अब तो बस इए नदी इस सागर से मिलने को तड़प ता हैं...। by Sai Prasad Mahapatra रुमाल