*विकास के नाम पर* भीख माँगने की अकल तो लगा ली , भीख माँगने की नौबत ही न आए.. इतना नहीं सोच पाये जनाब ...!! डिजिटल चोरी, डिजिटल डाँका, डिजिटल भीख, डिजिटल चंदा . सब कुछ सीख गये जनाब ... डिजिटल चोर पे मोर बनें कैसे?? यही न सीख पाए जनाब !! विकास बहुत किया है हमने, समृद्धि को गर्त दिया है हमने । चाँद पर भी पहुँचकर देखो तो बस धोखा देना ही सीखा हमने । हम जा सकते थे आगे बहुत आगे.. पर लोलुपता ने खींची टाँग । चोरी चकारी में बढ़ गये आगे . और नैतिकता के खा गए प्राण । इसीलिए धोखाधड़ी हो जाती,, पुलिस बनी रहती नादान । कभी पकड़ न पाती फौरन , अपराधी के स्पाट पे कान ।। काश हम ऐसा विकास कर पाते, ऐसी तकनीक इजाद कर पाते, अपराधी प्रवृत्ति दिमाग में आते ही व्यक्ति का दिमाग शून्य कर पाते । फिर ना होते अपराध जगत में और ना होता कोई अपराधी ।। सफेदपोशों की दाल न गलती । सज्जन की होती चाँदी ही चाँदी।। अभी भी देर हुई नहीं है ,,, अक्ल लगाओ और करो इजाद तकनीक करो ऐसी निर्मित , हर बुराई करे जो धरा से साफ। हर बुराई करे जो धरा से साफ। लेखिका\कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान © सागर मध्यप्रदेश भारत 16 फरवरी 2023 ©Pratibha Dwivedi urf muskan #विकास #धोखा #डिजिटल #अपराध #प्रतिभा #प्रतिभाउवाच #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कानकीकलमसे #स्वरचितकाव्य #नोजोटोहिंदी