शायद तप कर कुंदन हो,दर्द कहीं जो गहरा है जिसे संभाला है शिद्दत से,मुस्कानों का पहरा है दर्द जो शायद दरया है,नहीं है जिसका पार पैरों पर जिसके उफ़क़ लपेटे डूब रही मजधार शायद जिसे ख़ुदा कहते है वो भी अंधा बहरा है शायद तप कर कुंदन हो,दर्द कहीं जो गहरा है लहर टीस की अक़्सर उठ कर, तूफ़ान कोई बन जाती है ना जाने कितनी बारिश वो बीते कल की लाती है फिर है कैसी ज़िद है जाने, दिल जो काफ़िर ठहरा है शायद तप कर कुंदन हो,दर्द कहीं जो गहरा है साँसों का अपना किस्सा है ,अक़सर बागी रहती है महल रेत के सीने में जो रोज़ बनाती ढहती हैं औऱ समेटा हैं ख़ुद में जो वो भी ऊसर सहरा है शायद तप कर कुंदन हो,दर्द कहीं जो गहरा है एक दिन मैं परवाज़ बनूँगा आसमान को चूमूँगा जिस्म की बंदिश तोड़ मलंगा कटी पतंग सा झूमुंगा यही ख़्वाब एक बचा हुआ है जिसका रंग सुनहरा है शायद तप कर कुंदन हो,दर्द कहीं जो गहरा है ख़ामोशी को कहने दो @ ज्वार की रातें 1 ©Mo k sh K an #mokshkan #mikyupikyu #ab _khamoshi_ko _kahne _do #अब_खामोशी_को_कहने_दो #हिंदी #Hindi #Nojoto #nojatohindi