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बहुत खास थे कभी नजरों में किसी के

















बहुत खास थे कभी
नजरों में किसी के हम भी,
मगर नजरों के तकाज़े
बदलने में देर कहाँ लगती है।
गीली लकड़ी सा इश्क़ तुमने सुलगाया है,
न पूरा जल पाया कभी न ही बुझ पाया है।

©deepak mahawar
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