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पल्लव की डायरी उदारीकरण की विफल हुयी व्यवस्था मगर

पल्लव की डायरी
उदारीकरण की विफल हुयी व्यवस्था
मगर संसाधन के आदी होकर
दुनिया हाथ अब मलती है
छूट गये काम धंधे,मंदी चहुँ ओर पसरी है
पेशेवरो के पास जमा हो गयी
राष्ट्र की अपार संपत्ति
जनता हाथ अब मलती है
प्राइवेट सब कर के
उनके उत्पादों की मनमानी कीमत वसूलती है
हाइजेक है सभी सरकारे 
नतमस्तक उनके सामने होती है
लोकतंत्र और समाजवाद सब पीछे छूटा
गुलामी के दौर में एक बार फिर हम
दूध आटे पर भी जजिया कर देते है
                                       प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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