जिस्म को बेचकर के उसका, जिस्म की प्यास बुझाती हैं। हवस की भूखी नंगी दुनिया, खुद का निवाला बनाती है। हजारों बहसी दंरिदे रोज ही, उसके आगोश मे हैं खोते, बड़ा मजबूर कर दुनिया किसी औरत को वेश्या बनाती हैं। दंरिदो से हजारो बेटिया हर रोज, यही औरत बचाती हैं। दुनिया कर सितम जिस पर हजारो बड़ी नोटे उड़ाती हैं। वो अपना नाम खोकर के, खुद का अस्तित्व खोती हैं, बड़ा मजबूर कर दुनिया किसी औरत को वेश्या बनाती हैं। बेज्जत करती हैं पहले फिर, इज्जत की बोली लगाती हैं। सभीकुछ छीन के दुनिया उन्हे, हजारो गालिया सुनाती हैं। हजारों ख्वाहिशें कत्ल कर के, वो खुदी को भूल जाती हैं। बड़ा मजबूर कर दुनिया किसी औरत को वेश्या बनाती हैं। अनुपम अनूप भारत #वेश्या