तुझ संग प्रेम बंधन में बँधी या कुछ और ही है ये माज़रा, पर बूद मेरा तुझसे ही रौशन है, तुझ बिन मैं बे-आसरा। फ़लक बद्र से रोशन हो जब जब, तेरे चेहरे का मुझे दीदार हो तब तब। प्रेम तेरा कल्ब-ए-बादिया में बरसात सा बरसता है, तुझे देख देख के मेरी जाँ कोई शाम-ओ-सहर सँवरता है। बे ज़ुबाँ तो नहीं पर तारीफ़ तेरी करूँ भी तो क्या? बख़्त तू मेरा, ज़ीस्त महकी, ख़ुदा का शुक्रिया करूँ भी तो क्या? फ़ाख़िर बना दिल ये मेरा बेहिस सा मारा फ़िरता है, तेरे दिल का पता मालूम नादाँ दिल तुझ ही से करता है। ग़र हो तेरा भी हाल कुछ कुछ मुझ जैसा तो कह देना, निगाह भर के तक लेना, तू भी कभी मुझमें भटक लेना। बूद - अस्तित्व बद्र - पूर्ण चन्द्रमा बादिया - उजाड़ बख़्त - सौभाग्य फ़ाख़िर - अभिमानी बेहिस - बेशर्म