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लफ्ज़ो के बोझ से थक जाती है जिन्दगी। ना जाने खामो

लफ्ज़ो के बोझ से थक जाती है जिन्दगी। 
ना जाने खामोशी मजबुरी है या समझदारी। 

शिवा तिवाड़ी

लफ्ज़ो के बोझ से थक जाती है जिन्दगी। ना जाने खामोशी मजबुरी है या समझदारी। शिवा तिवाड़ी

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