शीशोे के घर वालो शहर में पत्थर बिकते है बच्चों के हाथो ही बच्चों के मुक़द्दर बिकते है मुफलिसी के घर बेटी जब सयानी हो जाये किसी के जेवर तो , किसी के घर बिकते है सच कही और जा,अदालत में तो झूठ बिकते है दाम वाजिब हो तो यहाँ खाकी, खद्दर बिकते है ठंड से उस मस्जिद के सामने कोई मर गया खुदा के लिए जहाँ, रोज़ हज़ारो चद्दर बिकते है सोचता हूँ बता दूँ,ये शहादत नहीं,ये तो क़तल है इस सियासत के हाथो जवानो के सर बिकते है शरीफ से शरीफ लोग भी यहाँ ईमान बेच देते है तवायफो के बदन खैर दीवारों के भीतर बिकते है दुश्मन तो दुश्मन थोडा तू दोस्तों से भी संभल ......फूलो की दूकान पे भी खंजर बिकते है..!!!!