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शायद मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकता हूँ, क्योंकि मै

शायद मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकता हूँ,
क्योंकि मैं भी उन्ही अँधेरी गलियारों से गुजरा हूँ कभी,
तुम्हारी टिस को अब महसूस कर सकता हूँ,
क्योंकि मैं भी अँधेरी रातों में रोया हूँ कभी।
तुम्हारी उलझन दिखता है मुझे,
कभी मैं  हारा हुआ भटका हूँ कभी।
तुम्हारी सिसकियों को मैंने भी जिया हूँ,
क्योंकि मैं भी तकिये में मुँह छिपाकर सुबका हूँ कभी।
तुम्हारी गुमसुम आंखों को जानता हूँ,
मैंने भी तन्हाइयों को छिपाया है कभी,
शायद मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकता हूँ,
क्योंकि मैं भी उन्ही अँधेरी गलियारों से गुजरा हूँ कभी।

©Prashant Roy
  हसरतें साथ चलने की। Suruchi Roy
prashantroy0606

Prashant Roy

Bronze Star
New Creator

हसरतें साथ चलने की। @Suruchi Roy #कविता

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