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मेरी मन की खिड़कियां.... (एक छोटी सी कहानी ) एक

मेरी मन की खिड़कियां....

 (एक छोटी सी कहानी ) एक दिन दोपहर के समय पर काम पूरा ख़त्म करके
बस ऐसे ही खिड़की के पास बैठ गई थी..
बस अचानक से जितनी धूप थी,
उतने में ही काले बदल छाए हुए दिख गए
बस कुछ अपनी ही धुन में खो गई थी
उतने में हलका सा बारिश होने लगा..
बस इतने में याद आया, ऊपर छत पर कपड़े है
बस जल्दी से गई छत पर,
मेरी मन की खिड़कियां....

 (एक छोटी सी कहानी ) एक दिन दोपहर के समय पर काम पूरा ख़त्म करके
बस ऐसे ही खिड़की के पास बैठ गई थी..
बस अचानक से जितनी धूप थी,
उतने में ही काले बदल छाए हुए दिख गए
बस कुछ अपनी ही धुन में खो गई थी
उतने में हलका सा बारिश होने लगा..
बस इतने में याद आया, ऊपर छत पर कपड़े है
बस जल्दी से गई छत पर,
kulkarnik1101

lalitha sai

New Creator

एक दिन दोपहर के समय पर काम पूरा ख़त्म करके बस ऐसे ही खिड़की के पास बैठ गई थी.. बस अचानक से जितनी धूप थी, उतने में ही काले बदल छाए हुए दिख गए बस कुछ अपनी ही धुन में खो गई थी उतने में हलका सा बारिश होने लगा.. बस इतने में याद आया, ऊपर छत पर कपड़े है बस जल्दी से गई छत पर,