दिल में तूफान की तरह है वो गुमनाम मंजर. उस समंदर का ये इंतकाम आखरी है. फिर नहीं लौटूंगा उसकी यादों से वापस. ऐसा लगता है वो जाम आख़िरी है.!! आ तू भी लगा मेरे साथ एक पैमाना शराब का. तुझे भी तो खबर हो की ये शाम आख़िरी है. बेशक अमीर होगा तू अपने जहां में. आज यहां भी गरीबी की नाम आख़िरी है.! कितनी आसानी से टूटा था मेरा दिल. उस दिल का भी यही अंजाम आख़िरी है. अगर कभी याद करे वो मुझे तो. कह देना उसके शहर में मेरी शाम आख़िरी है.!! जो कभी बना ना पाया खुशियों का आशियाना. उससे क्यों कहते हो कि ये इल्जाम आख़िरी है. बेमौत मारा है इस जहां में मुझे. क्यों ना कहूं कि मेरी सलाम आख़िरी है.! अगर हो कोई शिकवे तो भुला देना दोस्तों.. क्योंकि दोस्ती के शहर में ये नाम आख़िरी है. अब कभी नहीं लौटूंगा मैं इस महफिल में. क्योंकि यारों तुम्हारे साथ ये रात आखिरी है.! # आखरी