घर जलेंगे उनके इक दिन तीलियों को क्या पता... है नज़र उन पर किसी की बस्तियों को क्या पता....?? ढूँढ़ती हैं आज भी पहली सी रंगत फूल में.... ज़हर कितना है हवा में तितलियों को क्या पता...?? हाल क्या है ? ठीक हैं , जब भी मिलें इतना हुआ... किसके अन्दर दर्द क्या हैं , साथियों को क्या पता....?? धूप ने , जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें... इन दरख्तों की कहानी आँधियों को क्या पता...?? जाएगा उनके सहारे हीं शिखर तक आदमी... फिर गिरा देगा उन्हें हीं सीढ़ियों को क्या पता...?? वो गुज़र जाती हैं यूँ ही रास्तों को काटकर अपशकुन है यें किसी का बिल्लियों को क्या पता...?? हौंसले के साथ लहरों की सवारी कर रहीं... कब कहाँ तूफ़ान आए कश्तियों को क्या पता...?? वो तो अपना घर समझकर कर रहीं अठखेलियाँ.. जाल फैला है नदी में मछलियों को क्या पता......?? #कुछ_बातें